जालंधर (हितेश सूरी) : श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जठेरे महेन्द्रू बाहरी बिरादरी का 62वाँ वार्षिक मेला 07 फरवरी 2025 दिन शुक्रवार को बाबा जी के पवित्र समाथि स्थल मंदिर श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जी (जठेरे) महेन्द्रू बाहरी बिरादरी सभा, शेर सिंह कॉलोनी, बस्ती पीरदाद रोड, जालंधर शहर में बड़ी धूम-धाम व श्रद्धा से मनाया जा रहा है। श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जठेरे महेन्द्रू बाहरी बिरादरी के वार्षिक मेले के उपलक्ष्य में न्यूज़ लिंकर्स की विशेष प्रस्तुति :-
[highlight color=”red”]अमर कथा श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जी [/highlight]
संसार में समय-समय पर अनेक ऋषि मुनि सिद्ध और तपस्वी हुए है, जिन्होंने न केवल अपना जीवन ही नहीं सफल बनाया बल्कि अपने संसर्ग में आने वाले सभी मनुष्यों को अच्छे कर्म करने की प्रेरणा देकर उन्हें सीधा, सुगम एवं प्रभु भक्ति का मार्ग सुझाया। सिरसा के इलाके में दुर्भिक्ष आधी के कारण तथा रहन-सहन की अनुकूलता यथाविधि न होने के कारण महेन्द्रू-बाहरी बिरादरी के पूर्वज वह स्थल छोड़कर अपने काफिले के रूप में बैलगाड़ियों पर सवार होकर पुरानी जरनैली वाली सड़क से होते हुए फिरोज़पुर से कपूरथला तथा कपूरथला से आगे जालंधर की तरफ बढ़े एवं काफिले के नगर में प्रवेश करने से पहले उस स्थान पर रुके जो आजकल शेर सिंह कॉलोनी, बस्ती पीरदाद के नाम से विख्यात है और साथ ही महेन्द्रू-बाहरी बिरादरी के पवित्र स्थान के तौर पर पूज्य है। यही से महेन्द्रू-बाहरी बिरादरी के बुजुर्ग़ बस्तियो से पार जो जालंधर के नाम से नया नगर उभर रहा था वहां आये और जिस मोहल्ले को आबाद किया वह आजकल महेन्द्रू मोहल्ले के नाम से प्रसिद्ध है। इस सुसमृद्ध काफिले के साथ रिद्धियो – सिद्धियो के मालिक पूर्ण कर्मयोगी सिद्ध पुरुष मोहिंद्रू-बाहरी कुल के गुरुदेव सिद्ध श्री बाबा केशव नाथ जी भी पधारे, जो सदा ईश्वर भक्ति में लीन रहते। गुरुदेव सिद्ध श्री बाबा केशव नाथ जी का इतना तेज़ तप है कि जो भी संपर्क में आता वह नतमस्तक हुए बिना न रहता। श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जी की सिद्धि इतनी महान है कि जो शब्द मुख से निकलते है, वह पूरा होकर ही रहते है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी कर देते है। जब बिरादरी के सभी सदस्य नगर में आकर बस गए तब बाबा जी ने उसी स्थान पर अपना निवास रखा। वहाँ अपना आश्रम स्थापित किया और वही बैठकर तपस्या की तथा मालिक की बंदगी में जीवन-यापन करने लगे। बाबा जी चमत्कारी शक्ति के स्वामी थे और जनजीवन में उनका प्रभाव इतना बढ़ा कि लोग नित्य प्रति उनके दर्शनों के लिए आने लगे। वैसे तो प्रतिदिन ही वहाँ मेला-सा लगा रहता था, परन्तु प्रति वर्ष माघ शुदी दशमी के पुण्यः दिवस पर वहाँ विशेष प्रोग्राम चलता रहता और आसपास के पीर-फ़क़ीर, साधु, संत, महात्मा, ऋषिवर व तपस्वी भी यहाँ इकट्ठे होते तथा गृहस्थी परिवार भी यहाँ पर बाबा जी का प्रसाद प्राप्त करने के लिए दरबार में हाज़िर रहते। हर मास की शुदी दशमी तिथि को ही विशेष तौर पर बिरादरी के सदस्य अपने नवजात शिशुयों के पेहनी (नया चोला धारण करने की रस्म) के लिए यहाँ आते परंतु माघ शुदी दशमी वाले दिन पेहनी का संस्कार करके लोग अपने आप को विशेष रूप से धन्य मानते । इस प्रकार यह स्थान विशेष धार्मिक स्थान के नाते देश भर में प्रसिद्ध हो गया। वर्तमान में इस स्थान का पुनः जीर्णोद्धार हो रहा है। धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर जो भी मन्नत मांगी जाती है वो अवश्य पूरी हो जाती है। इस पवित्र समाथि स्थल के निकट एक प्रचीन कुआँ भी था। पवित्र समाथि के निर्माण काल में उसका पानी सूख गया था इसलिए उसे पूर (बंद) दिया गया था, पर उसी स्थान पर एक तालाब का निर्माण किया गया। जो लोग बाहर रहते है वह भी प्रथा के अनुसार पेहनी के वस्त्र बाबा जी के पवित्र जल से स्पर्श करके मंगवाते है तथा अपने-अपने नगर और घरो में धार्मिक रीतिपूर्वक नवजात शिशुयों को वस्त्र पहनाते है। श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जी महाराज जी की पवित्र समाथि पर लोग आते ही रहते है, परन्तु हर माघ की शुदी दशमी पर तो दूर-दूर से बाबा जी के दर्शनों को संगत आया करती थी। इसलिए जब पहली प्रबंधक कमेटी बनी, जिसके प्रधान श्री सुदर्शन लाल महेन्द्रू सहित समूह महेन्द्रू-बाहरी बिरादरी सदस्यों ने पवित्र समाधी स्थल पर त्यौहार का दिवस माघ शुदी दशमी का ही निश्चित किया था जोकि आज तक वैसे ही मनाया जाता है। मन्दिर का विस्तार करने में प्रथम प्रधान स्व. श्री सुदर्शन लाल महेन्द्रू , स्व. श्री ब्रिज लाल बाहरी, स्व. श्री तिरलोक चन्द महेन्द्रू , स्व. श्री धर्मपाल महेन्द्रू , स्व. श्री सवाया राम महेन्द्रू , स्व. श्री नन्द किशोर महेन्द्रू , स्व. श्री पुरषोत्तम दास महेन्द्रू , स्व. श्री कमल मोहन महेन्द्रू , स्व. श्री नन्द लाल महेन्द्रू , स्व. श्री रमेश महेन्द्रू , स्व. श्री डी.एन. बाहरी (एडवोकेट), स्व. श्री रोशन लाल महेन्द्रू , स्व. श्री शिव पाल महेन्द्रू , स्व. श्री राम मूर्ति महेन्द्रू ने अपना बहुमूल्य सहयोग दिया।वही महेन्द्रू-बाहरी बिरादरी के वर्तमान प्रधान अरुण बाहरी का कहना है कि जब मन्दिर निर्माण शुरू किया गया तो बहुत बार उन्हें आसमान में गोले नज़र आते और उन्हें वहां के लोगों को बहुत बार सफेद चादर ओढ़े हुए बाबा जी का आभास होता था और सभी लोग बाबा जी के दर्शनों के लिए उत्तेजित होते थे। उन्होंने कहा कि पुराने लोगो और क्षेत्रवासियों के मुताबिक किसी समय मन्दिर के साथ लगती ज़मीन भी मन्दिर प्रांगण का ही हिस्सा हुआ करती थी और जब-जब जमींदार द्वारा वहाँ पर कोई भी फसल लगाई जाती थी तो अगली सुबह जब जमींदार और वहाँ के लोग फसल को देखते तो हैरान हो जाते कि पूरी फसल की फसल ख़राब हो चुकी होती थी। उन्होंने कहा कि वहां पर बहुत बार फसल लगाकर देखा गया पर वहाँ पर कोई भी फसल नहीं होती थी, आखिरकार जमींदारो ने बाबा जी के सामने नतमस्तक होकर कब्ज़ा छोड़ दिया। श्री बाहरी ने आगे कहा कि हर वर्ष बाबा जी का वार्षिक मेला माघ शुद्ध दसवीं को बाबा जी के समाथि स्थल मंदिर श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जी (जठेरे) महेन्द्रू बाहरी बिरादरी सभा, शेर सिंह कॉलोनी, बस्ती पीरदाद रोड, जालंधर शहर में बड़ी धूम-धाम एवं श्रद्धा से मनाया जाता है। इस मौके पर श्री बाहरी ने प्रशासन से बाबा जी के मेले में सुरक्षा प्रबंधों को मुकम्मल करने की मांग की है ताकि मेले में कोई अप्रिय घटना ना घटें। इस दौरान मेला चेयरमैन राहुल बाहरी व प्रवीण महेन्द्रू ने सभी श्रद्धालुओं से परिवार सहित मेले में शामिल होने का निमंत्रण देते हुए बताया कि मन्दिर में बाबा जी के मेले का भव्य आयोजन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि मेले में भक्तों के लिए लंगर का भी प्रबंध किया गया है।
[highlight color=”orange”]महेन्द्रू बाहरी बिरादरी की परम श्रद्धय प्रातः स्मरणीयः जियो सती माता जी का उल्लेख[/highlight]
महेन्द्रू बाहरी बिरादरी की परम श्रद्धय प्रातः स्मरणीयः जियो सती माता जी का उल्लेख भी आवश्यक है। यह परम सिद्ध देवी अपने में एक परम तपस्विनी तथा प्रभु भक्तनी थी। इस देवी का परम पवित्र समाथि स्थल तालाब बाहरिया, कपूरथला रोड, जालंधर शहर में ही है। महेन्द्रू बाहरी बिरादरी का कोई भी कार्य पूर्ण नहीं माना जाता जब तक बिरादरी का सदस्य देवी सती के पवित्र चरणों में बैठकर हाज़िरी देकर आशीर्वाद न प्राप्त कर ले। पवित्र सन्देश, परम सिद्ध श्री सिद्ध बाबा केशव नाथ जी महाराज ईश्वर भक्ति, आपसी भाईचारा तथा समानता का उपदेश देते थे। हर प्राणी मात्र में उस ईश्वरणीय ज्योति के दर्शन करना, हर धार्मिक जीव का लक्ष्य मानते थे।