जालंधर (हितेश सूरी) : आखिरकार लम्बे समय के बाद यह फैसला हो गया है कि जालंधर शहर में मूंग के पकौड़े बेचने वाली दो दुकानों के बीच असली कौन है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 24 मार्च 1998 में जालंधर की माननीय अदालत में केस शुरू हुआ और अब 20 जनवरी को फैसला आया है। जिला न्यायाधीश ने ‘जवाली दी हट्टी’ के मालिकों के अधिकारों को बरकरार रखा है और सेंट्रल टाउन में गुरुद्वारा दीवान अस्थान के सामने स्थित पकौड़े वाली दुकान को ‘जवाले दी हट्टी’ नाम का नाम का उपयोग बंद करने का आदेश दिया है तथा इस ट्रेडमार्क के उपयोग से अर्जित लाभ का हिसाब देने का भी आदेश दिया है। बताया जा रहा है कि जालंधर कैंट की ‘ज्वाली दी हट्टी’ के संचालकों केशो राम एंड संस ने सेंट्रल टाउन के ‘जवाले दी हट्टी’ के संचालक हरीष कुमार को पार्टी बनाया था।
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केस में केशो राम एंड संस की जीत हुई है। इस फर्म के संचालक विपन कुमार और परिवार के 4 लोग हैं। केशो राम एंड संस का प्रतिनिधित्व वकील मनुज अग्रवाल ने किया था। गतदिवस शनिवार को प्रेस क्लब में केशो राम एंड संस से चंद्र गोयल, विपिन गोयल और नरेश कुमार बॉबी ने फैसले की जानकारी दी है। वादी केशो राम संस ने कहा कि उनके दादा ज्वाला प्रसाद ने अपने छोटे नाम ज्वाले से ये बिजनेस आरंभ किया था। उन्होंने कहा कि वक्त के साथ परिवार की अगली पीढ़ी ने बिजनेस को आगे बढ़ाया और उनका जालंधर कैंट तथा आसपास में खासा नाम है। उन्होंने आगे कहा कि वह नमकीन, मीठे और मूंगी की दाल के पकौड़े एवं मीठी मसालेदार चटनी का बिजनेस नाम तथा स्टाइल में ज्वाली दी हट्टी पकौड़े वाले के नाम से चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि 1958 के ट्रेड मार्क एक्ट में शामिल क्लास-30 में शामिल हैं। वादी केशो राम संस ने अपनी सेल अमाउंट की जानकारी भी दी, जिसके मुताबिक 1989-1990 में 2,26,127 रुपए की सेल की थी, फिर 1995-96 में 4,96,299 रुपए की सेल की थी। केस में केशो राम संस ने कहा कि उन्होंने कुछ दिनों बाद सेंट्रल टाउन में दुकान के बाहर बैनर की जानकारी मिली, जिस पर लिखा था- “छावनी वालों की ज्वाले दी हट्टी, स्पेशल दाल के स्पेशल पकौड़े”। उन्होंने कहा कि इससे ऐसा लगता है कि यह कैंट में उनके बिजनेस का ही सिस्टर कंसर्न फर्म है क्योकि वह ‘जालंधर छावनी की पुरानी दुकान’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस कारण माननीय अदालत में केस किया, जहा हमें इंसाफ मिला है। वही ‘ज्वाले दी हट्टी’ के संचालक हरीष कुमार पुत्र नाथू राम का कहना है कि जिस तरह से मुकदमा दायर किया गया है, वह स्वीकार्य नहीं है। हरीश ने कहा कि वादी साफ हाथों से अदालत में नहीं आया है और उनकी दुकान के नाम का उपयोग न तो समान है और न ही यह भ्रामक है क्योकि प्रतिवादी और उसके पूर्वज पिछले 200 वर्षों से अधिक समय से कैंट के निवासी थे तथा ज्वाला प्रसाद उनके परदादा थे। बहरहाल ‘ज्वाले दी हट्टी’ के संचालकों के पास हाईकोर्ट में जाने का विकल्प खुला है।