असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तानी कुलवंत राउके भी इस सीट से लड़ेगा चुनाव; अमृतपाल का समर्थक है राउके
जालंधर (हितेश सूरी) : असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तानी कुलवंत सिंह राउके ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। खालिस्तानी कुलवंत सिंह राउके के भाई महा सिंह ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत दौरान इसकी जानकारी साँझा की है। बताया जा रहा है कि कुलवंत सिंह राउके द्वारा बरनाला विधानसभा सीट से उप-चुनाव लड़ेगा। दरअसल आम आदमी पार्टी के गुरमीत सिंह मीत हेयर ने बरनाला सीट से विधानसभा चुनाव जीता था, अब उनके सांसद बनने के बाद इस सीट पर विधानसभा उप-चुनाव होना है।
अगर कुलवंत सिंह चुनाव लड़ता हैं तो उसे भी अमृतपाल की तरह जेल से ही चुनाव लड़ना होगा। इस मौके पर महा सिंह ने बताया कि मैंने शुक्रवार को अपने भाई कुलवंत सिंह राउके से फोन पर बात की और उन्होंने जेल में रहते हुए बरनाला सीट से उप-चुनाव लड़ने का फैसला किया है। महा सिंह ने कहा कि हम उनका पूरा समर्थन करेंगे। आपको बता दे कि कुलवंत सिंह राउके ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के चीफ अमृतपाल सिंह का कट्टर समर्थक है और वह भी अमृतपाल सिंह के साथ डिब्रूगढ़ जेल में बंद है। अमृतपाल सिंह और कुलवंत सिंह राउके को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है।
गौरतलब है कि खालिस्तानी भगवंत सिंह प्रधानमंत्री बाजेके ने भी इस सप्ताह की शुरुआत में मुक्तसर जिले की गिद्दड़बाहा सीट से उप-चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
[highlight color=”black”]कौन है कुलवंत सिंह राउके ??[/highlight]
मोगा जिले के राउके कलां गांव के रहने वाले 38 वर्षीय कुलवंत सिंह राउके पंजाब स्टेट पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसपीसीएल) में क्लर्क के तौर पर काम कर चुके हैं। कुलवंत सिंह राउके भी अमृतपाल का साथी था। मिली जानकारी के अनुसार पंजाब पुलिस ने ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह व उसके साथियों पर कट्टरपंथी गतिविधियों में भाग लेने के आरोप में कार्रवाई के दौरान कुलवंत सिंह को उसके घर से ही हिरासत में लिया था। कुलवंत सिंह पर आरोप है कि वह खालिस्तानी अमृतपाल सिंह की कट्टरपंथी गतिविधियों में मदद कर रहा था।
राउके के पिता चरहत सिंह को भी 1987 में एनएसए के तहत जेल में रखा गया था। महा सिंह ने बताया कि चरहत सिंह युवा अकाली दल के नेता थे और उन्हें पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरावाले के खालिस्तान समर्थक आंदोलन का समर्थन करने के लिए हिरासत में लिया गया था। उन्होंने बताया कि बाद में वह हमारे गांव के सरपंच भी बने और 25 मार्च 1993 को पुलिस उन्हें हमारे घर से जबरदस्ती ले गई। महा सिंह ने कहा कि हमें नहीं पता कि उसके साथ क्या हुआ, क्योंकि हमें उसका शव कभी नहीं मिला। परिवार का यह कहना कि आज तक हमें नहीं पता कि उन्हें फर्जी मुठभेड़ में मारा गया या वह अभी भी जीवित हैं। उन्होंने कहा कि हमारे पास उनकी मौत का कोई सबूत नहीं है। परिवार का कहना है कि बस हमें यह पता है कि उन्हें पुलिस ले गई और वह कभी वापस घर नहीं आए।