जालंधर (न्यूज़ लिंकर्स ब्यूरों) : हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। प्रत्येक महीने में दो एकादशी पड़ती हैं, एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में : एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना की जाती है। सभी 24 एकादशी में निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रत माना जाता है क्योंकि इसमें पूरे दिन बिना कुछ खाए और पानी पिए उपवास रखा जाता है। आज निर्जला एकादशी के उपलक्ष्य में पंजाब में ही नहीं बल्कि देशभर में विभिन्न धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक एवं राजनितिक संगठनों के प्रतिनिधियों और समाजसेवियों द्वारा अपने-अपने इलाकों में ठन्डे मीठे पानी की छबील एवं कई प्रकार के लंगर लगाए जा रहे है। इस श्रृंखला में जालंधर शहर में भी निर्जला एकादशी का पावन पर्व बहुत धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इस दौरान शहर के प्रमुख चौराहों, बाज़ारों, सड़कों पर विभिन्न मंदिर प्रबंधक कमेटियों, धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक संगठनों के सदस्यों और समाजसेवियों ने शर्बत, मीठे पानी की छबीलें लगायी और साथ ही कई तरह के लंगर लगाए गए।
इसके अलावा शहर के श्री देवी तालाब मंदिर, श्री गीता मंदिर अर्बन एस्टेट, श्री गीता मंदिर आदर्श नगर, माई हीरा गेट, लाडोवाली रोड, रेलवे रोड, मदन फिल्लौर मिल चौंक, किशनपुरा, सोढल रोड, पटेल चौंक, मॉडल टाउन, बस स्टैंड रोड़, रेलवे स्टेशन, पंजपीर रोड़, सैंट्रल टाउन समेत अन्य जगहों पर छबील और कई प्रकार के लंगर लगाए गए।
निर्जला एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
एक बार अपने भाइयों और माता कुंती को अलग अलग एकादशी व्रत करते हुए देखकर भीम ने भी यह व्रत करने का प्रयास किया, लेकिन भीमसेन को भूख बहुत लगती थी, इसी कारण वह एकादशी का उपवास नहीं रख सकें। भीमसेन ने अपनी समस्या महर्षि व्यास को बताकर उनसे एक ऐसा उपाय पूछा जिससे वह सभी एकादशियों का फल प्राप्त कर सकें, ताकि उन्हें उपवास की कठिनाई न झेलनी पड़े। फिर महर्षि व्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत करने की सलाह दी, जिसमें पूरे दिन बिना जल और भोजन के रहना पड़ता है। लेकिन इस व्रत को करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। तब भीमसेन ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गए। इसलिए निर्जला एकादशी को ‘ भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है।