नई दिल्ली/सिंघु बार्डर (न्यूज़ लिंकर्स ब्यूरों ) : इस समय गेहूं की फसल पक कर तैयार हो चुकी है। कई जगह गेहूं की फसल की कटाई शुरू हो गई है तो कई जगह गेहूं मंडियों में खरीदे भी जा रहे हैं। इस वजह से प्रदर्शनकारी अब सिंघु बार्डर छोड़कर पंजाब जाने लगे हैं। क्योंकि उनको पता है कि यहां बैठकर कोई फायदा नहीं है। नतीजन प्रदर्शनकारियों की संख्या में एक बार फिर से गिरावट शुरू हो गई है। जो लोग बचे हैं, वह नेताओं के नजदीकी हैं। चाह कर भी घर नहीं जा पा रहे हैं। इसलिए वह ट्रालियों या टेंट में बैठ कर समय काट रहे हैं। मायूसी उनके चेहरों पर साफ दिखाई देती है। ऐसे में सिंघु बार्डर पर दिल्ली की सीमा में ड्यूटी दे रहे कृषि कानून विरोधियों को बैठा कर रखना नेताओं के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। मजबूरन उनको मंच से कहना पड़ रहा है कि घर में चाहे कितना भी नुकसान हो जाए, चाहे फसल खेतों में ही बर्बाद हो जाए, वह यहां से नहीं जाएंगे। ऐसा तब हो रहा है जब बीते कई दिनों से कोई बड़ा नेता सिंघु बार्डर पर मौजूद नहीं है। न तो किसान मजदूर संघर्ष कमेटी (पंजाब) के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू और न ही महासचिव सरवन सिंह पंधेर मंच पर पहुंच रहे हैं। इससे इन नेताओं की मंशा साफ जाहिर हो रही है कि इन्हें न तो गेहूं की फसल से कोई मतलब है और न ही लोगों से। इन्हें सिंघु बार्डर को बंद करके लोगों को परेशान करने से मतलब है।
[highlight color=”red”]15-20 दिन में बदलते हैं प्रदर्शनकारी[/highlight]
अमृतसर व तरनतारन के गांवों के प्रदर्शनकारी यहां पर धरना दे रहे हैं। प्रदर्शन में हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर लोग बदल रहे हैं। 15 दिन कुछ गांवों के लोगों की ड्यूटी यहां पर रहने के लिए लगाई जाती है तो 15 दिन दूसरे गांव के लोगों की। अब जब इन प्रदर्शनकारियों की ड्यूटी पूरी हो गई है तो नेताओं की सांस फूल रही है।
[highlight color=”red”]गुजरात से निराश लौटे टिकैत[/highlight]
उधर किसानों के मुद्दों को लेकर गुजरात पहुंचे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत को किसानों का साथ नहीं मिला। गुजरात में राकेश टिकैत ने अपने दूसरे दिन की यात्रा की शुरुआत साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी की प्रतिमा का माल्यार्पण कर की। उनके साथ कांग्रेस किसान संगठन तथा शंकर सिंह वाघेला के गिने-चुने कार्यकर्ता ही नजर आए।