जालंधर (मुकुल घई) : विश्व प्रसिद्ध जालंधर के प्रचीन शीतला माता मंदिर में श्रदालुओं का सैलाब उमड़ रहा है। श्री शीतला माता का मेला 6 मार्च से शुरू हो गया है , जोकि 13 अप्रैल तक चलेगा। इस दौरान शीतला माता के मेले में देशो-विदेशों से श्रद्धालु पहुँच रहे है।
बता दे कि इस मेले में मुरादें पूरी होने पर माता-पिता या फिर उन बच्चों द्वारा मंदिर में आकर कच्ची लस्सी, दही व मीठी रोटी चढ़ाई जाती है , जिन पर माता की छाया आ जाती है, जिससे माता शीघ्र ही भक्तों पर कृपा करती है। कोरोना काल के चलते श्रदालुओं द्वारा बाकायदा रूप में कोरोना के नियमों का पालन किया जा रहा है। बता दे कि प्राचीन शीतला माता मंदिर 300 से 400 वर्ष पुराना है।
[highlight color=”red”]पढ़ें माँ शीतला अष्टमी की कथा :-[/highlight]
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक बार एक बुढ़िया और उनकी दो बहुओं ने शीतला माता व्रत किया। उन सभी को अष्टमी तिथि को बासी खाना खाना था। इसके चलते ही उन्होंने सप्तमी तिथि को ही भोजन बनाकर रख लिया था। लेकिन दोनों बहुओं ने को बासी भोजन नहीं करना था। क्योंकि उन्हें कुछ समय पहले ही संतान हुई थी। उन्हें लग रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि वो बासी भोजन करें और बीमार हो जाएं। अगर ऐसा हुआ तो उनकी संतान भई बीमार हो जाएगी। दोनों बहुओं ने बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा की। इसके बाद पशुओं के लिये बनाए गए भोजन के साथ ही अपने लिये भी ताजा भोजन बना लिया। फिर उसे ग्रहण भी कर लिया। फिर जब उनकी सास ने उन्हें बासी भोजन करने के लिए कहा तो उन्हें टाल दिया। यह कृत्य देख माता कुपित हो गईं और अचानक ही उनके नवजातों की मृत्यु हो गई। जब यह बात सास को पता चली तो उसने अपनी बहुओं को घर से निकाल दिया। दोनों अपने बच्चों के शवों को लिए रास्ते पर जा रही थीं। तभी वे एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुकीं। यहां पर दो बहनें थीं जिनका नाम ओरी व शीतला था। ये सिर में पड़ी जुओं से बेहद परेशान थीं। बहुओं को उनकी स्थिति देख उन पर दया आ गयी। उन्होंने उनकी मदद करनी चाही और उन बहनों के सिर से जुएं निकालीं। इससे उन दोनों बहनों को चैन मिल गया। उन बहनों ने बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए। यह सुन उन बहुओं ने कहा कि उनकी हरी गोद तो लुट गई है। तब उनमें से एक बहन जिनका नाम शीतला था, दोनों बहुओं को लताड़ लगाई और कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ता है। तब उन दोनों बहुओं ने माता शीतला को पहचान लिया। वे दोनों उनके पैरों में पड़ गईं और क्षमा मांगने लगीं। माता को उनके पश्चाताप करने पर दया आ गई और उन्होंने उनके मृत बालकों को जीवित कर दिया। यह देख वो खुशी-खुशी गांव लौट आयी। इसके बाद से पूरा गांव माता शीतला को मानने लगा।